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Showing posts from November, 2018

बीजेपी के लिए विकास कोई मुद्दा नहीं, हिंदुत्व पर होगा चुनाव

बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने बीबीसी हिंदी के फ़ेसबुक लाइव में राम मंदिर, रफ़ाल, नोटबंदी और लोकसभा चुनावों जैसे कई मुद्दों पर बात की. उन्होंने बीबीसी संवाददाता सलमान रावी के साथ इस बातचीत में जहां हिंदुत्व को चुनावी मुद्दा बताया तो वहीं मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल भी उठाए. सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्तमान राजनीतिक स्थिति, भावी चुनावों और मुद्दों को लेकर क्या-क्या कहा. पढ़िए स्वामी से बीबीसी की पूरी बातचीत... राम मंदिर पर बीजेपी की दूरी के मायने? बीजेपी को इस मामले पर दूर ही रहना चाहिए . वो सत्तारूढ़ दल है. मैंने राम मंदिर पर कोर्ट में याचिका दायर की है. इसे किसी पार्टी का सवाल नहीं बनाना चाहिए. खेद की बात है कि हमारे देश में बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद ने ही ये मुद्दा उठाया है. जबकि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने उस जगह पर मंदिर होने की बात को प्रमाणित किया है. वहां मंदिर के बाद ही मस्जिद बनाई गई थी. इस्लाम धर्म ने और सुप्रीम कोर्ट ने मेरी याचिका में पुष्टि की है कि मस्जिद उस जगह का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है.

ईरान का वो तुरुप का पत्ता जिससे पूरा खेल बदल जाएगा

ईरान पर अमरीकी पाबंदियों का सिलसिला एक बार फिर से शुरू हो गया है. अमरीका विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त तो है ही दूसरी तरफ़ उसकी मुद्रा डॉलर की बुनियाद पर दुनिया का 80 फ़ीसदी कारोबार और लेनदेन भी होता है. वह विश्व की एक मात्र राजनीतिक महाशक्ति भी है. जिस दिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु क़रार से बाहर निकलने के फ़ैसले पर दस्तख़त किए तब से ईरान के नेता और अधिकारी ल गातार कहते आ रहे हैं कि उनके ख़िलाफ़ प्रतिबंध को रोके जाने के उपाय हैं और परमाणु क़रार अमरीका के बगैर भी जारी रहेगा. लेकिन इतनी बात तो साफ़ लग रही है कि ईरानी अधिकारियों की गुहार से काम नहीं चलेगा. ईरान पर लगी आर्थिक पाबंदियों के असर को कोई कम कर सकता है तो वो है यूरोपीय संघ. हालांकि ये सवाल भी अपनी जगह वाजिब है कि अमरीका के ख़िलाफ़ जाकर यूरोप आख़िरकार क्यों इस परमाणु क़रार को बचाने की कोशिश करेगा? ईरान का परमाणु क़रार ईरान के ख़िलाफ़ अमरीकी पाबंदियां लागू रहीं तो यूरोपीय देश ईरान के साथ कैसे सियासी रिश्ते रखेंगे और तेहरान के हुक्मरानों को लेकर उनका क्या रुख़ होगा? परमाणु समझौते को