मोदी बहुत अच्छे वक्ता हैं, चुनाव नज़दीक हैं इसलिए वे बोलने तक सीमित नहीं रहना चाहते, उन्होंने लंबे अंतराल के बाद कुछ लिखा है, और क्या ख़ूब लिखा है. उन्होंने वही लिखा है जिसकी उम्मीद उनसे की जा सकती है.
ताज़ा ब्लॉग तब लिखा गया है जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह सहित लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेता उनके गृह राज्य गुजरात में हैं. वे वहां कार्यसमिति की बैठक और रैली करके मोदी को सीधी चुनौती दे रहे हैं.
मोदी ने इससे पहले 31 अक्तूबर 2018 को सरदार पटेल की जयंती पर अपने ऐप पर ब्लॉग लिखा था. उनके ब्लॉग को लोग 13 भाषाओं में पढ़ सकते हैं जिनमें हिंदी, अँग्रेज़ी और गुजराती के अलावा उर्दू भी शामिल है. उनके इस ब्लॉग का शीर्षक है- 'जब एक मुट्ठी नमक ने अंग्रेज़ी साम्राज्य को हिला दिया'.
एक मुट्ठी नमक की बात इसलिए क्योंकि मौक़ा महात्मा गांधी की डांडी यात्रा की जयंती का है. महात्मा गांधी को प्रधानमंत्री मोदी अक्सर याद करते हैं लेकिन चुनाव से ठीक पहले गांधी को याद करने का मक़सद पूरी तरह राजनीतिक था.
उन्होंने अपने ब्लॉग की शुरुआत कुछ इस तरह की- "क्या आपको पता है कि गांधी जी के डांडी मार्च की योजना बनाने में सबसे अहम भूमिका किसने निभाई थी? दरअसल, इसके पीछे हमारे महान नेता सरदार वल्लभभाई पटेल थे".
यहाँ 'हमारे' शब्द पर ग़ौर करना चाहिए, यह 'हमारे' गुजरातियों के लिए भी है, देशभक्तों के लिए भी और भाजपा के लिए भी. यह पटेल वही हैं जिन्होंने गृह मंत्री के तौर पर भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया था और प्रतिबंध की वजह थी गांधी की हत्या.
बहरहाल, प्रतिबंध लगने के बाद उस समय के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने सरदार पटेल को एक पत्र लिखा, उसके जवाब में पटेल ने 11 सितंबर 1948 की अपनी चिट्ठी में लिखा, ''संघ ने हिंदू समाज की सेवा की है, लेकिन आपत्ति इस बात पर है कि आरएसएस बदले की भावना से मुसलमानों पर हमले करता है. आपके हर भाषण में सांप्रदायिक ज़हर भरा रहता है. इसका नतीजा यह हुआ कि देश को गांधी का बलिदान देना पड़ा. गांधी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने ख़ुशियां मनाईं और मिठाइयाँ बाँटीं. ऐसे में सरकार के लिए आरएसएस को बैन करना ज़रूरी हो गया था."
अपने ब्लॉग में उन्होंने लिखा है, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस की संस्कृति गांधीवादी विचारधारा के बिल्कुल विपरीत हो चुकी है".
उनकी यह बात बिल्कुल सही है कि कांग्रेस लाख कोशिश करके भी ख़ुद को गांधी का सच्चा वारिस साबित नहीं कर सकती, उसके कलंकों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है जिसे मोदी सुविधा के साथ गिनवा सकते हैं. इन्हें गिनवाना राजनीतिक विरोधी का काम भी है.
लेकिन, दिक्कत ये है कि कांग्रेस की आलोचना करके मोदी अपनी सियासत और विरासत को छिपा नहीं सकते, बल्कि कई बार वे ज़्यादा उभरकर सामने आती हैं. जिन मुद्दों पर वे कांग्रेस की खिंचाई कर रहे हैं, अगर उन्हें ही पैमाना माना जाए तो बीजेपी और उसके प्रेरणास्रोतों का आचरण मोदी के लिए परेशानियां पैदा करता है.
मिसाल के तौर पर पीएम मोदी के ब्लॉग के इस वाक्य को देखें- "कांग्रेस ने समाज को विभाजित करने में कभी संकोच नहीं किया, सबसे भयानक जातिगत दंगे और दलितों के नरसंहार की घटनाएं कांग्रेस के शासन में ही हुई हैं".
अब ऊपर लिखे वाक्य की रोशनी में मोदी के गुजरात और देश भर के पिछले पौने पांच साल को देख लीजिए.
कांग्रेस की आलोचना सही है, होनी भी चाहिए लेकिन काश ऐसा होता कि उन्हीं बातों के लिए बीजेपी की आलोचना की गुंजाइश नहीं होती. मोदी यही दिखाने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी कांग्रेस से ठीक विपरीत है, कांग्रेस में सब काला है और बीजेपी में सब सफ़ेद. लेकिन दोनों के 'अपने-अपने 50 शेड्स ऑफ़ ग्रे' हैं.
अपने ब्लॉग में मोदी लिखते हैं, "बापू ने त्याग की भावना पर बल देते हुए यह सीख दी कि आवश्यकता से अधिक संपत्ति के पीछे भागना ठीक नहीं है जबकि कांग्रेस ने बापू की इस शिक्षा के विपरीत अपने बैंक खातों को भरने और सुख-सुविधाओं वाली जीवन शैली को अपनाने का ही काम किया".
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे बड़े नेता बड़े अरबपतियों के साथ सबसे ज़्यादा ख़ुश नज़र आते हैं, मानो इन उद्योगपतियों ने देश के निर्धन जन की सेवा करके अरबों कमाए हैं. कॉर्पोरेट दुनिया से मौजूदा सत्ता के रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे कांग्रेस के थे. कुछ लोग तो वो तस्वीर भी पेश कर देते हैं जिसमें अरबपति मुकेश अंबानी पीएम मोदी की पीठ पर हाथ रखकर खड़े हैं.
इसके बाद मोदी जी ने कांग्रेस के वंशवाद पर करारी चोट की है, यह कांग्रेस की ऐसी कमज़ोरी है जिसका भरपूर फ़ायदा उठाया जा सकता है. यह बात वह अच्छी तरह जानते हैं.
मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा- "बापू वंशवादी राजनीति की निंदा करते थे, लेकिन ख़ानदान सबसे ऊपर, यह आज कांग्रेस का मूलमंत्र बन चुका है".
वंशवाद कांग्रेस की पहचान रही है, इसमें कोई शक नहीं है, जब एक गांधी से काम नहीं चला तो प्रियंका को भी बुलाया गया है. कांग्रेस में शायद ही कभी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति नेतृत्व की भूमिका में आया. नरसिंह राव और सीताराम केसरी जैसे परिवार से बाहर के लोगों का पार्टी के भीतर कोई नामलेवा भी नहीं है.
यह बात सही है कि बीजेपी के दो शीर्ष नेताओं के परिवार के लोग इस समय राजनीति में नहीं हैं लेकिन राजनाथ सिंह, वसुंधरा राजे, येदियुरप्पा और लालजी टंडन जैसे पार्टी के बीसियों नेता ऐसे हैं जिनके बच्चे राजनीति में सेट कर दिए गए हैं. यानी बीजेपी यह नहीं कह सकती वह सैद्धांतिक तौर पर वंशवाद के ख़िलाफ़ है.
ताज़ा ब्लॉग तब लिखा गया है जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मनमोहन सिंह सहित लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेता उनके गृह राज्य गुजरात में हैं. वे वहां कार्यसमिति की बैठक और रैली करके मोदी को सीधी चुनौती दे रहे हैं.
मोदी ने इससे पहले 31 अक्तूबर 2018 को सरदार पटेल की जयंती पर अपने ऐप पर ब्लॉग लिखा था. उनके ब्लॉग को लोग 13 भाषाओं में पढ़ सकते हैं जिनमें हिंदी, अँग्रेज़ी और गुजराती के अलावा उर्दू भी शामिल है. उनके इस ब्लॉग का शीर्षक है- 'जब एक मुट्ठी नमक ने अंग्रेज़ी साम्राज्य को हिला दिया'.
एक मुट्ठी नमक की बात इसलिए क्योंकि मौक़ा महात्मा गांधी की डांडी यात्रा की जयंती का है. महात्मा गांधी को प्रधानमंत्री मोदी अक्सर याद करते हैं लेकिन चुनाव से ठीक पहले गांधी को याद करने का मक़सद पूरी तरह राजनीतिक था.
उन्होंने अपने ब्लॉग की शुरुआत कुछ इस तरह की- "क्या आपको पता है कि गांधी जी के डांडी मार्च की योजना बनाने में सबसे अहम भूमिका किसने निभाई थी? दरअसल, इसके पीछे हमारे महान नेता सरदार वल्लभभाई पटेल थे".
यहाँ 'हमारे' शब्द पर ग़ौर करना चाहिए, यह 'हमारे' गुजरातियों के लिए भी है, देशभक्तों के लिए भी और भाजपा के लिए भी. यह पटेल वही हैं जिन्होंने गृह मंत्री के तौर पर भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया था और प्रतिबंध की वजह थी गांधी की हत्या.
बहरहाल, प्रतिबंध लगने के बाद उस समय के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने सरदार पटेल को एक पत्र लिखा, उसके जवाब में पटेल ने 11 सितंबर 1948 की अपनी चिट्ठी में लिखा, ''संघ ने हिंदू समाज की सेवा की है, लेकिन आपत्ति इस बात पर है कि आरएसएस बदले की भावना से मुसलमानों पर हमले करता है. आपके हर भाषण में सांप्रदायिक ज़हर भरा रहता है. इसका नतीजा यह हुआ कि देश को गांधी का बलिदान देना पड़ा. गांधी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने ख़ुशियां मनाईं और मिठाइयाँ बाँटीं. ऐसे में सरकार के लिए आरएसएस को बैन करना ज़रूरी हो गया था."
अपने ब्लॉग में उन्होंने लिखा है, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस की संस्कृति गांधीवादी विचारधारा के बिल्कुल विपरीत हो चुकी है".
उनकी यह बात बिल्कुल सही है कि कांग्रेस लाख कोशिश करके भी ख़ुद को गांधी का सच्चा वारिस साबित नहीं कर सकती, उसके कलंकों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है जिसे मोदी सुविधा के साथ गिनवा सकते हैं. इन्हें गिनवाना राजनीतिक विरोधी का काम भी है.
लेकिन, दिक्कत ये है कि कांग्रेस की आलोचना करके मोदी अपनी सियासत और विरासत को छिपा नहीं सकते, बल्कि कई बार वे ज़्यादा उभरकर सामने आती हैं. जिन मुद्दों पर वे कांग्रेस की खिंचाई कर रहे हैं, अगर उन्हें ही पैमाना माना जाए तो बीजेपी और उसके प्रेरणास्रोतों का आचरण मोदी के लिए परेशानियां पैदा करता है.
मिसाल के तौर पर पीएम मोदी के ब्लॉग के इस वाक्य को देखें- "कांग्रेस ने समाज को विभाजित करने में कभी संकोच नहीं किया, सबसे भयानक जातिगत दंगे और दलितों के नरसंहार की घटनाएं कांग्रेस के शासन में ही हुई हैं".
अब ऊपर लिखे वाक्य की रोशनी में मोदी के गुजरात और देश भर के पिछले पौने पांच साल को देख लीजिए.
कांग्रेस की आलोचना सही है, होनी भी चाहिए लेकिन काश ऐसा होता कि उन्हीं बातों के लिए बीजेपी की आलोचना की गुंजाइश नहीं होती. मोदी यही दिखाने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी कांग्रेस से ठीक विपरीत है, कांग्रेस में सब काला है और बीजेपी में सब सफ़ेद. लेकिन दोनों के 'अपने-अपने 50 शेड्स ऑफ़ ग्रे' हैं.
अपने ब्लॉग में मोदी लिखते हैं, "बापू ने त्याग की भावना पर बल देते हुए यह सीख दी कि आवश्यकता से अधिक संपत्ति के पीछे भागना ठीक नहीं है जबकि कांग्रेस ने बापू की इस शिक्षा के विपरीत अपने बैंक खातों को भरने और सुख-सुविधाओं वाली जीवन शैली को अपनाने का ही काम किया".
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के सबसे बड़े नेता बड़े अरबपतियों के साथ सबसे ज़्यादा ख़ुश नज़र आते हैं, मानो इन उद्योगपतियों ने देश के निर्धन जन की सेवा करके अरबों कमाए हैं. कॉर्पोरेट दुनिया से मौजूदा सत्ता के रिश्ते वैसे ही हैं, जैसे कांग्रेस के थे. कुछ लोग तो वो तस्वीर भी पेश कर देते हैं जिसमें अरबपति मुकेश अंबानी पीएम मोदी की पीठ पर हाथ रखकर खड़े हैं.
इसके बाद मोदी जी ने कांग्रेस के वंशवाद पर करारी चोट की है, यह कांग्रेस की ऐसी कमज़ोरी है जिसका भरपूर फ़ायदा उठाया जा सकता है. यह बात वह अच्छी तरह जानते हैं.
मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा- "बापू वंशवादी राजनीति की निंदा करते थे, लेकिन ख़ानदान सबसे ऊपर, यह आज कांग्रेस का मूलमंत्र बन चुका है".
वंशवाद कांग्रेस की पहचान रही है, इसमें कोई शक नहीं है, जब एक गांधी से काम नहीं चला तो प्रियंका को भी बुलाया गया है. कांग्रेस में शायद ही कभी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति नेतृत्व की भूमिका में आया. नरसिंह राव और सीताराम केसरी जैसे परिवार से बाहर के लोगों का पार्टी के भीतर कोई नामलेवा भी नहीं है.
यह बात सही है कि बीजेपी के दो शीर्ष नेताओं के परिवार के लोग इस समय राजनीति में नहीं हैं लेकिन राजनाथ सिंह, वसुंधरा राजे, येदियुरप्पा और लालजी टंडन जैसे पार्टी के बीसियों नेता ऐसे हैं जिनके बच्चे राजनीति में सेट कर दिए गए हैं. यानी बीजेपी यह नहीं कह सकती वह सैद्धांतिक तौर पर वंशवाद के ख़िलाफ़ है.
Comments
Post a Comment